मासूम से गुलोँ का गुलिस्तान मर रहा है !
इन्सानियत को छोड़ के इन्सान मर रहा है !
बेघर गरीब और परेशान मर रहा है !
बर्मा में जाके देखो मुसलमान मर रहा है !
हुमा बिजनौरी – उर्दू शायरी- आपकी पसंदीदा शायरी एक जगह
तेरी यादों की लौ रातभर यूँ मेरे दिल पे जलती रही,
अश्क आँखों से बहते रहे, और मैं करवट बदलती रही।
मंजिले राहे उल्फत पे जब पांव रखे तो उक़्दह खुला,
वो कभी हमसफ़र ही ना था साथ जिसके मैं चलती रही।
साभार-हुमा बिजनौरी के फेसबुक पेज से
देर से आकर कहते है !
बाक़ी है अभी शाम बहुत !
ये भी करना था करम आपको जाते जाते !
ख्वाब जितने भी दिखाए थे मिटाते जाते !
मेरे खत को जला दिया तुमने,
यानि सचमुच भुला दिया तुमने।
तआल्लुक़ तर्क कर ले तोड़ दे सारे मरासिम भी,
ठहर जा बस मेरे अफ़साने का अंजाम होने तक।
क़फ़स में दाल के ताबीर के परिंदो को !
ना जाने ख्वाब क्यों मेरे कुचल रहा है कोई !
मौहब्बतों के सलीक़े सिखाने वाले सुन !
तेरे ख्याल के सांचे में ढल रहा है कोई !
ना जाने कब से अकेली हूँ राह में फिर भी !
यूँ लग रहा है मेरे साथ चल रहा है कोई !
देर से आकर कहते है !
बाक़ी है अभी शाम बहुत !
ये भी करना था करम आपको जाते जाते !
ख्वाब जितने भी दिखाए थे मिटाते जाते !
अदावतों के अंधेरों को खल रहा है कोई !
चराग बन के मौहब्बत का जल रहा है कोई !
मिला था अबकी दफा हमसे मुस्कुरा के बहुत !
मिज़ाज अपनी अना का बदल रहा है कोई !
मैं छोड़ आयी हूँ पीछे हर एक परछाई !
मेरे वजूद में अब क्यों मचल रहा है कोई !
एक फ़क़त तेरे न होने से, मेरे कमरे में..
ग़म चले आये सरे शाम ज़माने भर के।
वो भी है मसरूफ कहीं,
मुझको भी है काम बहुत।
मदारिस थे बहुत मशकूक लेकिन,
हमें हथयार डेरों से मिले हैं ।
किसी ज़ालिम ने क्या मसनद संभाला,
सदाक़त में खलल पड़ने लगा है।
तेरी यादों की लौ रात भर यू मेरे दिल पे जलती रही !
अश्क आँखों से बहते रहे और मैं करवट बदलती रही !
रात भर नींद का आँखों से लड़ाई झगड़ा !
मेरे ख्वाबो को मुकम्मल नहीं होने देता !
बस एक तेरी याद भुलाने की खातिर,
दिन भर खुद से बात बनाती रहती हूँ।
तुमसे नाराज़ थी बहुत लेकिन,
फोन एक बार ना किया तुमने।
वो मेरा प्यार है किस तरह ज़माने से कहू !
लोग चाहत का भी अफसाना बना देते है !
ज़बाँ खामोश रहती है, खमोशी बोल देती है,
मुलाक़ातों का सारा राज़ ख़ुशबू खोल देती है।