मैं तो इस सादगी-ए-हुस्न पै सदके उसके,
न जफा आती है जिसको न वफा आती है।
अब क्या जवाब दूँ मैं, कोई मुझे बताये,
वह मुझसे कह रहे हैं, क्यों मेरी आर्जू की।
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं,
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ मैं।
वह लाख सामने हों, मगर इसका क्या इलाज,
दिल मानता नहीं कि नजर कामयाब है।
समझे थे तुमसे दूर निकल जायेंगे कहीं,
देखा तो हर मकाम तेरी रहगुजर में है।
जिन्दगी निकली मुसलसल इम्तिहाँ-दर-इम्तिहाँ,
जिन्दगी को दास्तां ही दास्तां समझा था मैं।
मेरी हस्ती शौके-पैहम मेरी फितरत इज्तिराब,
कोई मंजिल हो मगर गुजरा चला जाता हूँ मैं।
जिगर मुरादाबादी शायरी--- आपकी पसंदीदा शायरी एक जगह
फूल वही, चमन वही, फर्क नजर – नजर का है,
अहदे-बहार में क्या था, दौरे-खिजाँ में क्या नहीं।
यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं,
जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं।
जिगर मुरादाबादी शायरी– आपकी पसंदीदा शायरी एक जगह
वही जिन्दगी है लेकिन “जिगर” यह हाल है अपना,
कि जैसे जिन्दगी से जिन्दगी कम होती जाती है।
हुस्न की हर इक अदा पे जानो-दिल सदके मगर,
लुत्फ कुछ दामन बचाकर ही गुजर जाने में है।
शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हकीकतन,
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं।
यूँ जिन्दगी गुजार रहा हूँ तेरे बगैर,
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं।
सकूँ है मौत यहाँ जौके-जुस्तजू के लिये,
यह तिश्नगी वह नहीं है जो बुझाई जाती है।
सदाकत हो तो दिल सीनों से खिंचने लगते हैं वाइज,
हकीकत खुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती।
सब जिसको असीरी कहते हैं वह है तो असीरी ही लेकिन,
वह कौन-सी आजादी है यहाँ, जो आप खुद अपना दाम नहीं।
गुम हो गया हूँ, बज्मे – तमन्ना में आके मैं,
किस-किस पे जान दीजिए, किस-किस को चाहिए।