वो सूफी का कौल हो, या पंडित का ज्ञान,
जितनी बीते आप पर, उतना ही सच जान।
सात समुन्दर पार से, कोई करे व्यापार,
पहले भेजे सरहदें, फिर भेजे हथियार।
सुना है अपने गाँव में, रहा न अब वह नीम,
जिसके आगे मंद थे, सारे वैध-हकीम।
बूढ़ा पीपल घाट का, बतियाए दिन-रात,
जो भी गुज़रे पास से, सिर पे रख दे हाथ।
मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार,
दुःख ने दुःख से बात कि, बिन चीठी बिन तार।
छोटा कर के देखिए जीवन का विस्तार,
आंखों भर आकाश है, बाहों भर संसार।
नदिया सींचे खेत को, तोता कुतरे आम,
सूरज ठेकेदार सा, सब को बांटे काम।
सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर,
जिस दिन सोये देर तक, भूखा रहे फकीर।
अच्छी संगत बैठकर, संगी बदले रुप,
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गयी धुप।
सपना झरना नींद का, जागी आँखें प्यास,
पाना, खोना, खोजना साँसों का इतिहास।
ईसा, अल्लाह, ईश्वर, सारे मंतर सीख,
जाने कब किस नाम से मिले ज्यादा भीख।
स्टेशन पर ख़त्म की भारत तेरी खोज
नेहरू ने लिखा नहीं कुली के सर का बोझ।
निदा फ़ाज़ली – आपकी पसंदीदा शायरी एक जगह
निदा फ़ाज़ली – आपकी पसंदीदा शायरी एक जगह
रास्ते को भी दोष दे, आँखें भी कर लाल,
चप्पल में जो कील है, पहले उसे निकाल।
ऊपर से गुड़िया हँसे, अंदर पोलमपोल,
गुड़िया से है प्यार तो, टाँकों को मत खोल।
दर्पण में आँखें बनीं, दीवारों में कान,
चूड़ी में बजने लगी, अधरों की मुस्कान।
घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव,
वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव।
चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात,
कटकर भी मरते नहीं, पेड़ों में दिन-रात।
मैं क्या जानूँ तू बता, तू है मेरा कौन,
मेरे मन की बात को, बोले तेरा मौन।
चिड़ियों को चहकाकर दे, गीतों को दे बोल,
सूरज बिन आकाश है, गोरी घूँघट खोल।
लेके तन के नाप को, घूमे बस्ती गाँव,
हर चादर के घेर से, बाहर निकले पाँव।
सब कि पूजा एक सी, अलग अलग है रीत,
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाए गीत।
पूजा घर में मुर्ति मीरा के संग श्याम,
जिसकी जितनी चाकरी, उतने उसके दाम।