चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया,
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया।
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है,
हम भी पागल हो जाएँगे ऐसा लगता है।
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया,
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया।
मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर,
ये सोच ले कि मैं भी तिरी ख़्वाहिशों में हूँ।
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें,
ये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें।
तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ,
छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ।
आँसू हमारे गिर गए उन की निगाह से,
इन मोतियों की अब कोई क़ीमत नहीं रही।
अश्क-ए-ग़म दीदा-ए-पुर-नम से सँभाले न गए,
ये वो बच्चे हैं जो माँ बाप से पाले न गए।
दर्द भरी बेहतरीन शायरी- आपके टूटे दिल के लिए
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे,
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे।
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को,
मैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं।
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए,
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए।
घर में रहा था कौन कि रुख़्सत करे हमें,
चौखट को अलविदा'अ कहा और चल पड़े।
जाने वाले को कहाँ रोक सका है कोई,
तुम चले हो तो कोई रोकने वाला भी नहीं।
अब के जाते हुए इस तरह किया उस ने सलाम,
डूबने वाला कोई हाथ उठाए जैसे।
छोड़ने मैं नहीं जाता उसे दरवाज़े तक,
लौट आता हूँ कि अब कौन उसे जाता देखे।
आँख कम-बख़्त से उस बज़्म में आँसू न रुका,
एक क़तरे ने डुबोया मुझे दरिया हो कर।
आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर,
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया।
वो बात सोच के मैं जिस को मुद्दतों जीता,
बिछड़ते वक़्त बताने की क्या ज़रूरत थी।
वो तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा,
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए।