दुनिया की कोई भी क़ौम अपनी बर्बादी एवं अपने समाज के पिछड़ेपन का ज़िम्मेदार खुद को नहीं मानती है।


लोकतांत्रिक व्यवस्था में अगर कोई भी समाज शैक्षणिक, आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर पिछड़ा है तो उसका पूर्णरूप से ज़िम्मेदार स्टेट है, ना कि वो समाज।

कोई भी समाज पिछड़ा है तो उसका पूर्णरूप से ज़िम्मेदार हकीमत -ऐ वक़्त है, ना कि वो समाज

माजिद मजाज़ (अल्पसंख्यक मामलों के विशेष जानकार)

क्योंकि समान अवसर देना, लोगों को मुख्यधारा में लाना, गैर-बराबरी खत्म करना ये सब सरकारों की जिम्मेदारी है। कोई भी समाज अगर तरक्की की राह में बहुत पीछे छूट गया है तो इसमें सौ फ़ीसद मक्कारी सरकारों की है। 

पर यहीं हमारी क़ौम के कुछ चोट्टे, जिन्हें दादा-दीदी कुछ पता नहीं, बड़के विश्लेषक बनके तुरंत अपनी बर्बादी का ज़िम्मेदार खुद को बता देते हैं। 


कुछ ढक्कन ऐसे मिलते हैं जो कहते हैं कि हम पढ़ते लिखते नहीं इसलिए ये क़ौम पिछड़ी है, ऐसे पगलेटों को ये नहीं पता कि जब इनके लिए सरकारों ने शिक्षा व्यवस्था मुहैय्या ही नहीं कराया है तो क्या ये काठमांडू में जाकर पढ़ेंगे? 

जब इनकी आबादी के एक बड़े हिस्से को दो वक़्त का खाना नसीब नहीं है तो ये एमिटी/गलगोटिया में थोड़े पढ़ने जा पाएँगे? 


कुछ तो टाई लगाके ये मूर्खता करते हुए मिल जाएँगे कि मुसलमान मेहनत नहीं करना चाहते, ऐसे मूर्खों को ये नहीं पता कि दुनिया की सबसे मेहनती क़ौम मुसलमान ही है।


पिछले सत्तर सालों से इस देश का मुसलमान अपने दम पर मस्त होकर जी रहा है, जिसमें सरकारों का योगदान न के बराबर है।

एक और होते हैं बहुत बड़े गदहे, जो दिन रात इत्तेहाद का डफली लेकर घूमते रहते हैं, जिन्हें सारे पिछड़ेपन का जिम्मेदार आपस में नाइत्तेफाकी है।


पर इन गदहों को ये बात पता नहीं कि कोई भी समाज एकजुट न कल था और ना कभी होगा। आपस में लड़ाई-झगड़ा, खुराफात ये सब इंसानों की फितरत है।


अब मुसलमान अगर इत्तेहाद न होने की वजह से पिछड़े हैं तो फिर ब्राह्मण कैसे इतना मजबूत हैं जिनमें खुद कभी आपस में एकता नहीं रही है?