तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे,
हम तो वो हैं तिरे चेहरे से दिखाई देंगे।
हम को महसूस किया जाए है ख़ुश्बू की तरह,
हम कोई शोर नहीं हैं जो सुनाई देंगे।
लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ़,
सर झुकाना नहीं आता तो झुकाएँ कैसे।
क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है,
हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आएँ कैसे।
फूल से रंग जुदा होना कोई खेल नहीं,
अपनी मिट्टी को कहीं छोड़ के जाएँ कैसे।
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा,
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा।
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं,
मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा।
वसीम बरेलवी-अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
तुम्हारे साथ निगाहों का कारोबार गया,
तुम्हारे ब'अद निगाहों में कौन आता था।
सफ़र के साथ सफ़र के नए मसाइल थे,
घरों का ज़िक्र तो रस्ते में छूट जाता था।
वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था,
कि आसमाँ के फ़रिश्तों को प्यार आता था।
उसे गुलाब की पत्ती ने क़त्ल कर डाला,
वो सब की राहों में काँटे बहुत बिछाता था।
फ़ैसला लिक्खा हुआ रक्खा है पहले से ख़िलाफ़,
आप क्या साहब अदालत में सफ़ाई देंगे।
पिछली सफ़ में ही सही है तो इसी महफ़िल में,
आप देखेंगे तो हम क्यूँ न दिखाई देंगे।
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा,
एक क़तरे को समुंदर नज़र आएँ कैसे।
जिस ने दानिस्ता किया हो नज़र-अंदाज़ 'वसीम',
उस को कुछ याद दिलाएँ तो दिलाएँ कैसे।
वसीम बरेलवी-अपने अंदाज़ का अकेला था
वसीम बरेलवी– वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था
वसीम बरेलवी– तू समझता है कि रिश्तों की दुहाई देंगे
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र,
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा।
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा,
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा।
वसीम बरेलवी-शायरी - आपकी पसंदीदा शायरी एक जगह
अपने अंदाज़ का अकेला था,
इस लिए मैं बड़ा अकेला था।
प्यार तो जन्म का अकेला था,
क्या मिरा तजरबा अकेला था।
साथ तेरा न कुछ बदल पाया,
मेरा ही रास्ता अकेला था।
बख़्शिश-ए-बे-हिसाब के आगे,
मेरा दस्त-ए-दुआ अकेला था।
वसीम बरेलवी-अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे,
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे।
घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत ब'अद का है,
पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएँ कैसे।