गौरतलब है कि साल 2015 में सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री बनने के बाद से कर्नाटक में हर साल टीपू सुल्तान की जंयती मनाई जाती है।  लेकिन हर बार बीजेपी इसका कड़ा विरोध करती आई है।  

शर्मनाक-येडियुरप्पा सरकार ने टीपू सुल्तान जयंती का कार्यक्रम रद्द किया

फैसला ऐसे समय आया है जब हाल ही में कर्नाटक की राजनीतिक उठापटक पर विराम लगा है।येदियुरप्पा ने काफी खींचतान के बाद 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।

सोमवार को ही उन्होंने विधानसभा में ध्वनिमत से विश्वास मत हासिल किया। विधानसभा अध्यक्ष ने कार्रवाई करते हुए कांग्रेस-जेडीएस के 17 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था।


इसके बाद बहुमत साबित करने के लिए येदियुरप्पा को 224 सदस्यों वाली विधानसभा में 104 विधायकों का समर्थन चाहिए था। एक निर्दलीय समेत उनके पास 106 विधायकों का समर्थन था।

कर्नाटक के पूर्व मुख्‍यमंत्री सिद्दरमैया ने कहा, 'मैंने केवल टीपू जयंती मनाने की शुरुआत की थी। मेरे अनुसार, वह देश के पहले स्‍वतंत्रता सेनानी थे। भाजपा के लोग सेक्‍यूलर नहीं हैं।'

18वीं सदी के मैसूर के शासक टीपू सुल्तान की जयंती हर साल 10 नवंबर को मनाई जाती है लेकिन अब जब राज्य में बीजेपी की सरकार आ गई तो इस पर रोक का निर्णय लिया गया है।

  
पिछले साल भी कांग्रेस-जेडीएस सरकार के दौरान इस जयंती को धूमधाम से मनाया गया था। कांग्रेस नेता सिद्धारमैया कई जगह कार्यक्रम में शामिल भी हुए थे और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना भी साधा था।  

येडियुरप्पा सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम को रद्द कर दिया है।  बीजेपी के विधायक बोपैया ने मुख्यमंत्री येडियुरप्पा को चिट्ठी लिख कर कार्यक्रम को रद्द करने की मांग की थी।
मगर याद रहे सरकार के कार्यक्रम रद्द करने से टीपू की अहमियत कम नहीं हो जाती और जंगे आज़ादी में टीपू का योगदान हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।